विश्व की अनूठी कृति, शहर की पहचान... सीदी सैय्यद की जाली अहमदाबाद. शहर के मध्य में स्थित सीदी सैयद की मस्जिद में लगी 'जाली; यानी पत्थर पर ताड़ के वृक्ष, पत्ते, बेल-बूटे की बारीक नक्काशी की अनूठी व महीन कारीगरी विश्वभर में चर्चित है। इस विरासत को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित किया जा रहा है। यूनेस्को की टीम जब अहमदाबाद को हैरिटेज सिटी के पैमाने पर परखने पहुंची तो इसे भी अच्छी तरह से सजाया गया।
सीदी सैय्यद जाली की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1880 में केनसिंगटन ने इस इकलौती जाली की कलात्मकता व बारीक कारीगरी की हू-ब-हू नकल को कागज पर उतारने के बाद इन दोनों जालियों के दो लकड़ी के मॉडल तैयार करवाए। जिन्हें न्यूयॉर्क संग्रहालय में आज भी संजोकर रखा गया है।
शहर के लाल दरवाजा इलाका स्थित सिदी सैय्यद मस्जिद का निर्माण सन् 1572-73 में यमन से आए सीदी सैयद के नाम से प्रसिद्ध हबशी ने गुजरात के 10वें सुल्तान नासिर-उल-दिन महमूद शाह तृतीय के शासनकाल में करवाया था। सीदी सैयद सुलतान के सूरत सूबे के खुदावंदखान ख्वाजा सफर सलमानीना के दूसरे पुत्र रूमीखान की नौकरी करते थे। वे सुल्तान नासिर उल दिन महमूद की सेना के सेनापति बिलाल झाझरखान के रसाला में जुड़े। सीदी सैयद गरीबों की मदद करने वाले दरियादिल व्यक्ति थे और उनके पास पुस्तकों का बड़ा संग्रहालय था।
आज भी यहां लोग हर दिन अल्लाह की इबादत करने आते ही हैं। साथ ही मस्जिद में लगीं दो पत्थर की जालियां (जिन्हें सीदी सैयद की जाली कहते हैं) को देखने भी पहुंचते हैं।
यूं तो ये मस्जिद है, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान इस मस्जिद का उपयोग सरकारी कार्यालय के रूप में भी हुआ करता था।
मस्जिद में करीब 10 जालियां हैं, जिनमें से सात जालियों में पत्थर पर वृक्ष एवं पत्तियों की नक्काशी की गई है और तीन जालियां खुली हुई हैं। बारह स्तंभों पर टिकी मस्जिद के द्वार पर दो मीनार और अंदर 15 गुम्बद बने हुए हैं। मस्जिद के पास ही सिदी सैय्यद की मजार बनी हुई है। मस्जिद में एक साथ करीब 2 हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं। यहीं पर सीदी सैयद के परिवार के सदस्यों की भी कब्र है।
'अंदर से पडऩे लगी दरारें'
शहर की पहचान है सीदी सैयद की जाली बाहर से तो अच्छी दिखाई देती है, लेकिन इसका अंदरूनी हिस्से में दरारें पडऩे लगी हैं। ये हल्की सी झडऩा भी शुरू हुई है। जिसके चलते इसके अंदरूनी हिस्से की डिजाइन का उभार उतना बेहतर नहीं दिखाई दा रहा है। हालांकि करीब छह साल पहले इसमें दरार आने पर मरम्मत कार्य भी किया जा चुका है।
सीदी सैय्यद जाली की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1880 में केनसिंगटन ने इस इकलौती जाली की कलात्मकता व बारीक कारीगरी की हू-ब-हू नकल को कागज पर उतारने के बाद इन दोनों जालियों के दो लकड़ी के मॉडल तैयार करवाए। जिन्हें न्यूयॉर्क संग्रहालय में आज भी संजोकर रखा गया है।
शहर के लाल दरवाजा इलाका स्थित सिदी सैय्यद मस्जिद का निर्माण सन् 1572-73 में यमन से आए सीदी सैयद के नाम से प्रसिद्ध हबशी ने गुजरात के 10वें सुल्तान नासिर-उल-दिन महमूद शाह तृतीय के शासनकाल में करवाया था। सीदी सैयद सुलतान के सूरत सूबे के खुदावंदखान ख्वाजा सफर सलमानीना के दूसरे पुत्र रूमीखान की नौकरी करते थे। वे सुल्तान नासिर उल दिन महमूद की सेना के सेनापति बिलाल झाझरखान के रसाला में जुड़े। सीदी सैयद गरीबों की मदद करने वाले दरियादिल व्यक्ति थे और उनके पास पुस्तकों का बड़ा संग्रहालय था।
आज भी यहां लोग हर दिन अल्लाह की इबादत करने आते ही हैं। साथ ही मस्जिद में लगीं दो पत्थर की जालियां (जिन्हें सीदी सैयद की जाली कहते हैं) को देखने भी पहुंचते हैं।
यूं तो ये मस्जिद है, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान इस मस्जिद का उपयोग सरकारी कार्यालय के रूप में भी हुआ करता था।
मस्जिद में करीब 10 जालियां हैं, जिनमें से सात जालियों में पत्थर पर वृक्ष एवं पत्तियों की नक्काशी की गई है और तीन जालियां खुली हुई हैं। बारह स्तंभों पर टिकी मस्जिद के द्वार पर दो मीनार और अंदर 15 गुम्बद बने हुए हैं। मस्जिद के पास ही सिदी सैय्यद की मजार बनी हुई है। मस्जिद में एक साथ करीब 2 हजार लोग नमाज अदा कर सकते हैं। यहीं पर सीदी सैयद के परिवार के सदस्यों की भी कब्र है।
'अंदर से पडऩे लगी दरारें'
शहर की पहचान है सीदी सैयद की जाली बाहर से तो अच्छी दिखाई देती है, लेकिन इसका अंदरूनी हिस्से में दरारें पडऩे लगी हैं। ये हल्की सी झडऩा भी शुरू हुई है। जिसके चलते इसके अंदरूनी हिस्से की डिजाइन का उभार उतना बेहतर नहीं दिखाई दा रहा है। हालांकि करीब छह साल पहले इसमें दरार आने पर मरम्मत कार्य भी किया जा चुका है।
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